Grade- 8 रोली (हिन्दी पाठमाला) कबूतरबाज़ी

  

मौखिक (Oral Expression)

 

1. प्राचीनकाल में कबूतर का उपयोग किसके रूप में किया जाता था?

उत्तर - प्राचीनकाल में कबूतर का उपयोग संदेशवाहक के रूप में किया जाता था।

 

2. कबूतरों का मोर किसे कहते हैं?

उत्तर - कबूतरों का मोर लक्का को कहते हैं क्योंकि इसकी पूँछ मोर की तरह छतरीनुमा होती है।

 

3. किस प्रतियोगिता में कबूतरों का मेला-सा लग जाता है?

उत्तर - कुलकुल प्रतियोगिता में कबूतरों का मेला-सा लग जाता है।

 

4. कबूतरों के चुग्गे के रूप में किसका प्रयोग किया जाता है?

उत्तर - कबूतरों के चुग्गे के रूप में बाजरा, ज्वार, मक्का इत्यादि को प्रयोग में लाया जाता है।

 

5. कबूतरबाज अपने कबूतर की पहचान के लिए क्या करते हैं?

उत्तर - कबूतरबाज अपने कबूतरों की पहचान के लिए उनके पैरों में लोहे या प्लास्टिक का छल्ला डाल देते हैं।

 

लिखित (Written Expression)

बहुविकल्पीय प्रश्न (Multiple Choice Questions)

सही उत्तर के सामने सही का निशान () लगाइए-

1. मोर की तरह छतरीनुमा पूँछ किस कबूतर की होती है?

(क) लक्का की ()

(ख) चंदन चोइया की

(ग) नकाबपोश की

(घ) चिराग रोशन की

 

2. किस कबूतर का स्वभाव शर्मीला होता है?

(क) चंदन चोइया का

(ख) लोटन का

(ग) नकाबपोश का ()

(घ) शिराजी का

 

3. जोड़े में रहने के लिए कौन-सा कबूतर प्रसिद्ध है?

(क) लोटन

(ख) चंदन चोइया ()

(ग) लक्का

(घ) जोगिया

 

 लघु उत्तरीय प्रश्न (Short Answer Type Questions)

1. उस्ताद या खलीफा किन्हें कहा जाता था?

उत्तर - राजदरबारों में कबूतरों की देखरेख के लिए कुछ व्यक्ति विशेष रूप से नियुक्त रहते थे, जिन्हें उस्ताद या खलीफा कहा जाता था। ये उस्ताद कबूतरों को प्रशिक्षित भी करते थे।

 

2. भारत में किन-किन नस्लों और जातियों के कबूतर पाले जाते हैं?

उत्तर - भारत में कई नस्लों और जातियों के कबूतर पाले जाते हैं; जैसे-शिराजी, खाल, जोगिया, खैरा, भातिया, नकाबपोश, लोटन, चंदन चोइया, चिराग रोशन, बबरा, मक्सी, पेटिया, लक्का इत्यादि।

 

3. प्रतियोगिता में कबूतरों की कौन-सी टोली श्रेष्ठ मानी जाती थी?

उत्तर - कबूतरों की जो टोली सबसे ज्यादा समय तक आसमान में रहती है अथवा सबसे दूर तक एक ही ऊँचाई पर जाती है और उसी ऊँचाई पर उसी रास्ते से वापस आती है. जिस रास्ते से वह गई थी, वही टोली श्रेष्ठ मानी जाती है।

 

4. होशियार कबूतर क्या करते हैं?

उत्तर - होशियार कबूतर दूसरे झुंड के कबूतरों को अपने साथ घेर लाते हैं।

 

5. कबूतरबाजी का शौक आम जनता में कैसे फैला?

उत्तर – राज दरबारों के उस्ताद या खलीफ्राओं के परिवारों से कबूतरबाजी का शौक आम जनता में फैला।

 

6. कबूतरबाजी में मनोरम दृश्य कब उपस्थित होता है?

उत्तर - आकाश में तैरते, कबूतरबाजों की सीटियों पर गोता लगाते और छतों पर उतरते कबूतर एक मनोरम दृश्य उपस्थित करते हैं।

 

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न (Long Answer Type Questions)

 

1. कबूतरबाज नए कबूतर को अपने झुंड में किस प्रकार शामिल करता है?

उत्तर - जब कोई कबूतरबाज अपने झुंड में नया कबूतर शामिल करता है तो पहले उस कबूतर को पंख बाँधकर पुराने कबूतरों के साथ रखा जाता है, ताकि वह जगह की पहचान कर ले, साथ ही उसे जड़ी-बूटियाँ खिलाई जाती हैं. जिसे कबूतरबाज 'मसाला' कहते हैं। पहले उसे छत पर ही दौड़ाया जाता है। फिर कुछ दिन बाद उसके पंख खोलकर थोड़ा-सा उड़ाया जाता है। जब कबूतर बिलकुल पक्का हो जाता है और कबूतरबाज को विश्वास हो जाता है कि अब कबूतर यहीं रहेगा तो उसे पुराने झुंड के साथ उड़ने के लिए छोड़ा जाता है।

 

2. सच्चे कबूतरबाज़ की क्या पहचान है?

उत्तर – एक सच्या कबूतरबाज अपने कबूतरों की सेवा और देखरेख में इतना तल्लीन रहता है कि कभी-कभी तो उसे पारिवारिक था सामाजिक उपेक्षा भी सहनी पड़ती है, विशेषकर जब वह मुकाबले के लिए अपने कबूतरों को तैयार करता है। उस समय कुछ दिनों के लिए पारिवारिक दायित्वों और स्वयं के खानपान के प्रति भी अत्यधिक लापरवाह हो जाता है।

 

सच्चे कबूतरबाज कबूतरों को पालने में और मुकाबलों की तैयारी में जो धन, श्रम और समय खर्च करते हैं, उसके पीछे आर्थिक लाभ का जरा भी प्रश्न नहीं होता, बल्कि वहाँ अपनी इज्जत का सवाल और पुरखों द्वारा शुरू की गई परंपरा को निबाहते चले जाने का दायित्व बोध होता है।

 

3. उड़ान प्रतियोगिता हेतु कबूतरबाज क्या तैयारी करते हैं?

उत्तर - जब कबूतरों की उड़ान प्रतियोगिता होती है तो एक-दो हफ्ते पूर्व से ही कबूतरबाज मुकाबले की तैयारी में लग जाते हैं और कबूतरों को बड़े ही मनोयोग से बादाम, पिस्ता, अखरोट, मलाई, मक्खन खिलाते हैं।

 

4. 'गोला प्रतियोगिता' क्या है? संक्षेप में लिखिए।

उत्तर - कबूतरों की गोला प्रतियोगिता में कबूतरों को जमीन पर दौड़ाया जाता है। प्रत्येक झुंड में साठ से अस्सी तक कबूतर होते हैं। जो झुंड दौड़ में सबसे आगे निकल जाता है वही विजयी माना जाता है।

 

5. 'कुलकुल' प्रतियोगिता का वर्णन कीजिए।

उत्तर - 'कुलकुल' कबूतरबाजी में एक खास प्रतियोगिता भी होती थी जो सिर्फ आगरा में ही आयोजित होती थी। यह प्रतियोगिता अब बंद कर दी गई है। यह एक बहुत बड़े मैदान या जंगल में आयोजित की जाती थी, इसमें कबूतरबाज अपने-अपने कबूतरों को लेकर निश्चित स्थान पर पहुँचते थे। इस उड़ान प्रतियोगिता में हज्जारों की संख्या में कबूतर भाग लेते थे। कुलकुल में कबूतरों का मेला-सा लग जाता था। प्रत्येक झुंड के कबूतरों को एक निश्चित रंग से चिह्नित कर दिया जाता है। निश्चित समय पर सभी कबूतरबाज अपने कबूतर उड़ा देते थे। देखते-ही-देखते हजारों कबूतर आसमान पर छा जाते । जिस कबूतरबाज के कबूतर ज्यादा दमदार होते हैं, वे दूसरे झुंड के कबूतरों को अपने साथ घेर लाते थे, जिस कबूतरबाज के पास. जितने कबूतर आ जाते थे, वे सभी उसके हो जाते हैं। कुलकुल के लिए कबूतरों को प्रतियोगिता से एक-दो महीने पहले तैयार किया जाता था। जिसमें कबूतरों को विशेष खुराक और जड़ी-बूटियों का

 

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्न (Questions Based on Comprehension)

आज के दौर में जब बिना आर्थिक लाभ के किसी कार्य को शौकिया तौर पर अपनाना कठिन हो गया है। कुछ लोग ऐसे भी हैं, जिन्होंने कबूतरबाजी को छोड़ा नहीं है और वे इसे पारंपरिक शौक के रूप में अपनाकर देश की सांस्कृतिक पहचान को बचाकर रखे हुए हैं। आज भी दिल्ली, आगरा, हैदराबाद, कोलकाता, बनारस, अहमदाबाद, पटना, कानपुर, बरेली, अजमेर जैसे प्रमुख शहरों के आकाश में तैरते, कबूतरबाजों को सीटियों पर गोता लगाते और छतों पर उत्तरते कबूतर एक मनोरम दृश्य उपस्थित करते हैं।

 

1. आज के दौर में बिना आर्थिक लाभ के किसी कार्य को शौकिया तौर पर अपनाना कठिन है। क्यों?

उत्तर – पहले के दौर में कबूतरबाज़ी जैसी प्रतियोगिताओं के लिए धन का प्रबंधा राजदरबारों द्वारा किया जाता थे। अतः अब बिना किसी आर्थिक लाभ के होने इस कार्य को शौकिया तौर पर अपनाना कठिन हो गया है।

 

2. लेखक ने कबूतरबाजों को सांस्कृतिक पहचान क्यों कहा है?

उत्तर - लेखक ने कबूतरबाजों को सांस्कृतिक पहचान कहा है क्योंकि पुराने समय में पक्षियों को राजा-महाराजा और नवाब विशेष संरक्षण प्रदान करते थे और कबूतरबाज़ी भारतीय संस्कृति का एक हिस्सा रही है।

 

3. शब्दों से मूलशब्द एवं प्रत्यय अलग-अलग करके लिखिए-

आर्थिक = अर्थ + इक

पारंपरिक = परंपरा + इक

सांस्कृतिक = संस्कृति + इक  

 

बात भाषा की

* कुछ शब्दों की रचना उपसर्ग एवं प्रत्यय दोनों के जुड़ने से होती है; जैसे प्रतियोगी (प्रति उपसर्ग, योग-मूल शब्द, ई-प्रत्यय)

 

1. उपसर्ग एवं प्रत्यय के संयोग से बने चार शब्द लिखकर उनसे उपसर्ग, मूलशब्द एवं प्रत्यय अलग-अलग कीजिए-

शब्द

उपसर्ग

मूलशब्द

प्रत्यय

लापरवाही

ला

परवाह

प्रतियोगी

प्रति

योग

अनुकरणीय

अनु

करण

ईय

सुविचारित

सु                

विचार

इत

प्रतिभावान

प्रति

भा

वान

 

2. निम्नलिखित वाक्यों में आए विशेषणों को रेखांकित कर भेद का नाम लिखिए-

 

(क) लंक्का की पूँछ छतरीनुमा होती है।

विशेषण: छतरीनुमा

भेद: गुणवाचक विशेषण (यह पूँछ के आकार का वर्णन करता है)

 

(ख) लक्का शर्मीले स्वभाव का होता है।

विशेषण: शर्मीले

भेद: गुणवाचक विशेषण (यह स्वभाव का वर्णन करता है)

 

(ग) कबूतर की खुराक दो-तीन तोला होती है।

विशेषण: दो-तीन तोला

भेद: परिमाण वाचक विशेषण (यह मात्रा का वर्णन करता है)

 

(घ) कबूतर को छत पर दौड़ाने के कुछ दिन बाद पंख खोलकर थोड़ा-सा उड़ाया जाता है।

विशेषण: थोड़ा-सा

भेद: परिमाण वाचक विशेषण (यह मात्रा का वर्णन करता है)

 

(ङ) एक टोली में चालीस-पचास कबूतर होते हैं।

विशेषण: चालीस-पचास

भेद: संख्या वाचक विशेषण (यह संख्या का वर्णन करता है)

 

(च) यह कबूतर तेज दौड़ता है।

विशेषण: तेज

भेद: गुणवाचक विशेषण (यह गति का वर्णन करता है)

 

3. निम्नलिखित शब्दों का समास-विग्रह कर समास का नाम लिखिए-

 

(क) राजदरबार

समास-विग्रह: राजा का दरबार

समास का नाम: तत्पुरुष समास (संबंध -षष्ठी तत्पुरुष)

 

(ख) जड़ी-बूटियाँ

समास-विग्रह: जड़ी और बूटियाँ

समास का नाम: द्वंद्व समास (दोनों पद प्रधान)

 

(ग) सुख-दुख

समास-विग्रह: सुख और दुख

समास का नाम: द्वंद्व समास (दोनों पद प्रधान)

 

(घ) पथभ्रष्ट

समास-विग्रह: पथ से भ्रष्ट

समास का नाम: तत्पुरुष समास (पंचमी तत्पुरुष)

हिंदी व्याकरण में विभक्तियाँ (कारक चिह्न) शब्दों के साथ जुड़कर उनका वाक्य में संबंध स्पष्ट करती हैं। हिंदी में आठ विभक्तियाँ (कारक) होती हैं, जो निम्नलिखित हैं:

 

1. कर्ता कारक (प्रथमा विभक्ति)

विभक्ति चिह्न: ने (क्रिया के साथ)

 

उदाहरण:

राम ने फल खाया।

सीता ने गाना गाया।

 

2. कर्म कारक (द्वितीया विभक्ति)

विभक्ति चिह्न: को (कर्म के साथ)

 

उदाहरण:

राम ने सीता को देखा।

मैंने उसे पुस्तक दी।

 

3. करण कारक (तृतीया विभक्ति)

विभक्ति चिह्न: से, के द्वारा

 

उदाहरण:

वह कलम से लिखता है।

मैंने बस से यात्रा की।

 

4. संप्रदान कारक (चतुर्थी विभक्ति)

विभक्ति चिह्न: को, के लिए

 

उदाहरण:

मैंने बच्चे को खिलौना दिया।

यह उपहार तुम्हारे लिए है।

 

5. अपादान कारक (पंचमी विभक्ति)

विभक्ति चिह्न: से (अलग होने का भाव)

 

उदाहरण:

वह घर से चला गया।

पेड़ से पत्ते गिरे।

 

6. संबंध कारक (षष्ठी विभक्ति)

विभक्ति चिह्न: का, की, के

 

उदाहरण:

यह राम की पुस्तक है।

वह मेरे भाई का दोस्त है।

 

7. अधिकरण कारक (सप्तमी विभक्ति)

विभक्ति चिह्न: में, पर

 

उदाहरण:

किताब मेज पर रखी है।

वह घर में है।

 

8. संबोधन कारक (संप्रदान विभक्ति)

विभक्ति चिह्न: हे, अरे,

 

उदाहरण:

हे राम! मेरी सहायता करो।

अरे भाई! यहाँ आओ।

 

ये सभी विभक्तियाँ वाक्य में शब्दों के बीच संबंध स्थापित करने में मदद करती हैं।

 

 

* वाक्य में क्रिया के जिस रूप से यह पता चलता है कि वाक्य में क्रिया कर्ता, कर्म अथवा भाव में से किसके अनुसार प्रयुक्त की गई है, वह वाच्य कहलाता है।

 

वाच्य के तीन भेद हैं- (1) कर्तृवाच्य (2) कर्मवाच्य (3) भाववाच्य

 

1. कर्तृवाच्य कर्तृवाच्य में क्रिया कर्ता के लिंग, वचन एवं पुरुष के अनुसार प्रयुक्त की जाती है; जैसे-

1.    पक्षी आकाश में उड़ते हैं।

2.    मैं कविता पढ़ता हूँ।

 

2. कर्मवाच्य कर्मवाच्य में क्रिया का प्रयोग कर्म वचन का होता है, क्रिया का प्रयोग भी उसी के के अनुसार किया जाता है। ऐसे वाक्यों में कर्म जिस लिंग, पुरुष एवं अनुसार किया जाता है; जैसे-

1.    पक्षी के द्वारा आकाश में उड़ा जाता है। •

2.    मेरे द्वारा कविता पढ़ी जाती है।

 

3. भाववाच्य भाववाच्य में कर्ता एवं कर्म की प्रधानता न होकर भाव की प्रधानता होती है। अतः यहाँ क्रिया का प्रयोग भाव के अनुसार किया जाता है। इस वाच्य का प्रयोग प्रायः असमर्थता प्रकट करने के लिए किया जाता है; जैसे-

1.    पक्षी से आकाश में उड़ा नहीं जाता।

2.    मुझसे कविता नहीं पढ़ी जाती।

 

4. निम्नलिखित वाक्यों को निर्देशानुसार बदलकर पुनः लिखिए-

(क) प्राचीनकाल में कबूतर 'संदेशवाहक' का कार्य करते थे। (कर्म वाच्य में)

      प्राचीनकाल में कबूतरों द्वारा 'संदेशवाहक' का कार्य किया जाता था।

 

(ख) कबूतरों द्वारा चुग्गा खाया जाता है। (कर्तृ वाच्य में)

      कबूतर चुग्गा खाते हैं।

 

(ग) कबूतर द्वारा जमीन पर दौड़ा जाता है। (कर्तृ वाच्य में)

      कबूतर जमीन पर दौड़ते हैं।

 

(घ) कबूतर आसमान में उड़ रहे हैं। (कर्म वाच्य में)

      कबूतरों द्वारा आसमान में उड़ा जा रहा है।

 

(ङ) कबूतर अभ्यास करते हैं। (भाव वाच्य में)

      कबूतरों से अभ्यास कराया जाता है।

 

(च) कबूतर शोर नहीं मचाते। (भाव वाच्य में)

      कबूतरों से शोर नहीं मचाया जाता।

 




 

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