गाँव का गीत
हमारे छोटे-छोटे ग्राम,
बने ये मानवता के
धाम ।
हरे-भरे खेतों में,
वन में, उपवन में,
सोना उगता है माटी
के कण-कण में।
हवा उड़ाती चूनर
रंग-बिरंगी यूँ-
अनगिन फूल खिले
हों जैसे फागुन में।
थके बटोही के
विश्राम,
हमारे छोटे-छोटे
ग्राम।
मेहनत की महिमा
घर-घर में हँसती है,
मुक्त सरलता पग-पग
यहाँ विचरती है।
साहस के संगी,
कष्टों के हमजोली-
हर आफत इनसे
टकराते डरती है।
संघर्षों के पथ
अविराम,
हमारे छोटे-छोटे
ग्राम।
ये उपकारी मौन
साधना करते,
नंगे पाँवों पथ के
काँटे चुनते |
अपने श्रम से
शहरों की झोली भरते,
बदले में सारे
अभाव ये खुद सहते ।
आओ, इनको करें प्रणाम, हमारे छोटे-छोटे ग्राम ।
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