तिवारी का तोता - पाठ

  

काशी की पवित्र नगरी में एक पंडित काशी तिवारी रहते थे, उनके पास एक तोता था। यह तोता तिवारी के पिंजरे में रहता था, तिवारी का दिया हुआ दाना खाता था और उसके घरवालों से तिवारी की ज़बान में बातें करता था।

 

एक दिन एक जंगली तोता आकर उसके पिंजरे के सामने बैठ गया और बोला, “क्यों भाई पंछी, तू कौन है, जिसकी सूरत मुझसे मिलती है, जिसका स्वभाव मुझसे नहीं मिलता, और जिसे किसी ने यहाँ कैद कर रखा है?"

 

पिंजरे के तोते ने जवाब दिया, “मैं भी तुझ जैसा तोता हूँ और मेरा रंग भी तेरे रंग की तरह हरा है, और मेरी चोंच भी तेरी चोंच की तरह मोटी है। फ़र्क सिर्फ़ यह है कि तू जंगल में रहता है और मैं इस मकान में रहता हूँ। मेरा मकान मज़बूत और तेरे जंगल में खतरा है।"

 

जंगल का तोता बोला, “तुझ पर लानत है! तेरी आज़ादी का रंग मुर्दा हो चुका है और तेरी आँखें अंधी हो गई हैं। वर्ना तू इस पिंजरे की तारीफ़ नहीं करता, जिसने तेरी देह को ही कैद नहीं किया, तेरी आत्मा को भी कैद कर लिया है। मैं तुझे जंगल से यह बताने के लिए आया हूँ कि तू अभागा है।"

 

पिंजरे के तोते ने कहा, “तेरी बातें मेरी समझ से बाहर हैं, फिर भी मैं तेरी बातों को अपने दिल में टटोलूँगा। तू मुझे समझा, मैं क्यों अभागा हूँ और वह कौन-सा दुर्भाग्य है, जिसे मेरी आँखें नहीं देखतीं?"

 

जंगल का तोता बोला, “तेरा घर अपना बनाया हुआ नहीं है, न उसके दरवाज़े पर तेरा अख्तियार है। तूने अपना मरना- जीना किसी दूसरे के हाथ में सौंप रखा है। यह तेरा दुर्भाग्य नहीं तो और क्या है? मगर तेरा इससे भी बड़ा दुर्भाग्य यह है कि तूने कभी खुले आसमान तले पंख नहीं फैलाए और कभी खुली हवा में साँस नहीं ली और कभी अपने रास्ते आप नहीं ढूँढ़े। तूने कभी मौत का सामना नहीं किया, इसलिए तूने कभी जीवन के मज़े नहीं लूटे। तू हर समय अपने मालिक के मुँह की तरफ़ देखता है! और तेरे लिए तेरी मर्ज़ी कोई चीज़ नहीं- तेरी मर्जी वह है जो तेरा मालिक चाहे । सो तेरा मालिक और तेरा पिंजरा तेरी दुनिया की सबसे बड़ी मुसीबत है।"

 

पिंजरे का तोता बोला, “मैं तो समझता हूँ, मेरा मालिक मुझ पर मेहरबान है और यह मेरी खुशकिस्मती है कि उसने मेरे लिए पिंजरा बना दिया है। वर्ना कौन मुझे पानी पिलाता? कौन मुझे दाना खिलाता? कौन रात के जाड़े और अंधेरे में मेरी रक्षा करता? और मेरे पड़ोस बहुत हैं, जिनके मुँह में दाँत हैं, पंजों में नाखून हैं, दिल में बेरहमी है। वे मुझे खा जातीं।

 

जंगल का तोता बोला, “भगवान करे, तेरे लिए तेरे जीवन के रास्ते बंद हो जाएँ। तू यह क्यों नहीं समझता कि तू यहाँ कैद है और इस कैद में तुझसे तेरी आत्मा भी बेगाना हो गई है। "

 

पिंजरे का तोता बोला, "मैं कैदी नहीं हूँ। मैं जब चाहूँ पिंजरे में घूम सकता हूँ, पंख फैला सकता हूँ, सीटियाँ बजा सकता हूँ। मुझे कोई नहीं रोकता, मेरे पिंजरे में मेरा राज है। फिर मैं क्योंकर मान लूँ कि मैं गुलाम हूँ और मेरा घर मेरा कैदखाना है?"

 

जंगल के तोते ने कहा, “इसलिए कि तू मालिक की बात सुनता है और मालिक की बोली बोलता है। सिर्फ एक दिन अपने मालिक की बात न सुन और उसकी बात का उसकी बोली में जवाब न दे और फिर देख, क्या होता है।"

 

पिंजरे का तोता बोला, “बहुत अच्छा! आज मैं किसी की बात न सुनूँगा, सिर्फ़ अपने मन की बात सुनूँगा। और आज मैं किसी की बोली न बोलूँगा, सिर्फ़ अपनी बोली बोलूँगा, जो मेरे माँ-बाप बोलते थे, जो तू बोलता है, जो मेरे मांस और हड्डियों की बोली है।'

 

इसके बाद जब जंगल का तोता दूसरे दिन आने की प्रतिज्ञा करके चला गया तो पिंजरे का तोता हैरान था और यह हैरानी उसके दिल पर और आँखों की पलकों पर छाई हुई थी।

 

जब पंडित तिवारी का बेटा वहाँ आकर तोते से बातें करने लगा, तो तोते ने उसकी बात का जवाब न दिया और अपने दिल में कहा, मैं इसकी बात का क्यों जवाब दूँ? मैं इसका गुलाम नहीं हूँ।

 

और पंडित तिवारी के बेटे ने लोहे की एक सींक लेकर पिंजरे में डाली और वह सींक तोते की गरदन में चुभोकर कहा, " बोलता है या नहीं?"

 

तोते ने जवाब न दिया और गरदन पर घाव खाकर एक तरफ़ हट गया। पंडित तिवारी के बेटे ने उसे फिर सींक चुभोई और कहा, "बोलता है या नहीं?"

 

तोते ने अब भी जवाब न दिया और वह छाती पर घाव खाकर दूसरी तरफ़ हट गया।

 

पंडित तिवारी के बेटे ने तोते को बार-बार सींक चुभोई और तोते ने हर बार उसकी बात का आदमी की बोली में जवाब देने से इनकार किया और वह अपने शरीर पर घाव खाता रहा।

 

दूसरे दिन जब जंगल का आज़ाद तोता पिंजरे के कैदी तोते से मिलने आया, तो पिंजरे का तोता मरा पड़ा था और उसके कैदखाने का दरवाज़ा खुला था। जंगल के तोते ने अपनी जंगल की बोली में कहा, “जब गुलाम अपने मालिक की बात नहीं सुनता, तो उसका यही हाल होता है। "

 

पंडित तिवारी ने अपने बेटे से कहा, "इस जंगली तोते को गुलेल से मारकर उड़ा दो। हमारा तोता इसी ने मारा है। "

 

और मरे हुए तोते की मरी हुई आत्मा ने कहा, "इस जंगली तोते को चूरी दो । इसने एक कैदी को छुड़ाया है और एक मुर्दे को जिंदा किया है।"

 


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