Class-8 Sanskrit (Ruchira) पञ्चमः पाठः धर्मे धमनं पापे पुण्यम् / NCERT Book/ CBSE Syllabus
पञ्चमः पाठः
धर्मे धमनं पापे पुण्यम्
शब्दार्थाः
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धमनंम् |
धक्का,
दन्गा |
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व्याधः |
बहेलिया |
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स्वीयाम् |
स्वयं की, अपनी |
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दौर्भाग्यात् |
दुर्भाग्य से |
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बद्धः |
बंधा हुआ |
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पलायनम् |
भाग जाना |
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न्यवेदयत् |
निवेदन किया |
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मोचयिष्यसि |
छोड़ दोगे |
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निरसारयत् |
निकाल दिया |
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क्लान्तः |
थका हुआ |
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पिपासुः |
प्यासा |
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शमय |
मिटाओ, शांत करो |
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बुभुक्षितः |
भूखा |
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भणितम् |
कहा |
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प्रक्षालयन्ति |
धोते हैं |
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विसृज्य |
छोड़ कर |
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निवर्तन्ते |
लौटते/ चले जाते हैं |
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उपगम्य |
पास जाकर |
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विरमन्ति |
विश्राम करते हैं/ रुकते है/ |
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कुठारैः |
कुल्हाड़ी ओं से |
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प्रहृत्य |
प्रहार करके |
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छेदनम् |
काटना |
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लोमशिका |
लोमड़ी |
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निलीना |
छिपी हुई |
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मातृस्वसः
! |
हे मौसी! |
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समागतवती |
पधारी हो |
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निखिलाम् |
पूरी, संपूर्ण |
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बाढम् |
अच्छा, ठीक है |
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प्रत्यक्षम्
- सामने |
सामने |
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वृत्तान्तम् |
घटना, कहानी |
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प्राविशत् |
प्रवेश किया |
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अनारतम् |
निरंतर |
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भ्रान्तः |
थका हुआ |
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प्रत्यावर्तत |
लौट आया |
अभ्यास:
एकपदेन उतरत।
(क) व्याधस्य नाम किम् आसीत?
चञ्चलः
(ख) पञ्चतः व्या कुत्र दृष्टवान्?
जाले
(ग) विस्तृत जाने कः बद्धः आसीत्।
व्याघ्रः
(घ) बदरी-गुल्माना पृष्ठे का निलीना आगीत?
लोमशिका
(ड़) अनारत
कुढनेन का थान्तः अभवत्
व्याघ्रः
2. संस्कृतेन उत्तरत-
(क) चञ्चलेन वने किं कृतम्?
चञ्चलेन वने जालं विस्तारितम्।
(ख) व्याघ्रस्य पिपासा कथं शान्ता अभवत्?
व्यायेन आनीतेन नदीजलेन व्याघ्रस्य पिपासा
शान्ता अभवत्।
(ग) जलं पीत्वा व्याघ्रः किम् अवदत्?
जलं पीत्वा व्याघ्रः अवदत्-'शान्ता मे पिपासा साम्प्रतं बुभुक्षितोऽस्मि । इदानीम् अहं खादिष्यामि ।'
(घ) चञ्चलः 'मातृस्वसः'
इति को सम्बोधितवान?
चञ्चल: 'मातृस्वसः'
इति लोमशिकां सम्बोधितवान् ।
(ङ) जाले पुनः बर्द्ध व्याघ्रं दृष्ट्वा
व्याचः किम् अकरोत् ?
जाले पुनः बद्धं व्याघ्रं दृष्ट्वा व्याधः
प्रसन्नो भूत्वा गृह प्रत्यावर्तत।
अपोलिखितानि वाक्यानि कः का
कं कां प्रति कथयति-
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वाक्यानि |
कः
/ का |
कं/कां |
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इदानीम्
अहं त्वां खादिष्यामि। |
व्याघ्रः |
व्याधम् |
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कल्याणं
भवतु ते। |
व्याघ्रः |
व्याधम् |
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जनाः
मवि स्नानं कुर्वन्ति। |
नदी |
व्याधम् |
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अरे
मूर्ख धर्मे धमनं पापे पुण्यं भवति एव। |
व्याघ्रः |
व्याधम् |
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यत्र
कुत्रापि छेदनं कुर्वन्ति । |
वृक्षः |
व्याधम् |
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सम्प्रति
पुनः पुनः कूर्दनं कृत्वा दर्शय |
लोमशिका
|
व्याघ्रम्
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4. सन्धिं कृत्वा लिखत-
मृग + आदीनाम = मृगादीनाम्
तथा + एव = तथैव
कुत्र + अपि = कुत्रापि
बुभुक्षितः + अस्मि = बुभुकक्षितोSस्मि
प्रति + आ + अपर्तत = प्रत्यावर्तत
उदाहरणानुसारं रिक्तस्वानानि
पूरयत-
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एकवचनम् |
द्विवचनम् |
बहुवचनम् |
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मातृ
(प्रथमा) |
माता |
मातरौ
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मातरः |
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स्वसृ
(प्रथमा) |
स्वसा |
स्वसारौ |
स्वसारः |
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मातृ
(तृतीया) |
मात्रा |
मातृभ्याम् |
मातृभिः |
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स्वसृ
(तृतीया) |
स्वस्रा |
स्वसृभ्याम्
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स्वसृभिः |
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स्वसृ
(सप्तमी) |
स्वसरि |
स्वस्रोः |
स्वसृषु |
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मातृ
(सप्तमी) |
मातरि |
मात्रोः |
मातृषु |
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स्वसृ
(षष्ठी) |
स्वसुः |
स्वस्रोः |
स्वसृणाम् |
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मातृ
(पष्ठी) |
मातु: |
मात्रोः |
मातृणाम् |
मञ्जूषातः पदानि चित्वा कथां
पूरयत-
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दृष्ट्वा, साट्टहासम्, स्वकीयैः, तर्हि, स्वराभ्याम्,
वृद्धः, अकस्मात्, कृतवान्,
क्षुद्रः, कर्तनम्, मोचयितुम् |
एकस्मिन् वने एकः वृद्धः व्याघ्रः
आसीत्। सः एकदा व्याधेन विस्तारिते जाले बद्धः अभवत्। सः बहुप्रयासं कृतवान् किन्तु
जालात् मुक्तः नाभवत् । अकस्मात् तत्र एकः मूषकः समागच्छत् । बद्धं व्याघ्रं
दृष्ट्वा सः तम् अवदत्-अहो! भवान् जाले बद्धः। अहं त्वां मोचयितुम्
इच्छामि। तच्छुत्वा व्याघ्रः साट्टहासम् अवदत्-अरे! त्वं क्षुद्रः
जीवः मम साहाय्यं करिष्यसि । यदि त्वं मां मोचविष्यसि तर्हि अहं त्वां न
हनिष्यामि। मूषकः स्वकीयैः लघुदन्तैः तज्जालं कर्तनं कृत्वा तं व्याघ्रं
वहिः कृतवान्।
धातुं प्रत्ययं च लिखत।
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पदानि |
धातुः |
प्रत्ययः |
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गन्तुम् |
गम् |
तुमुन् |
|
द्रष्टुम् |
दृश् |
तुमुन् |
|
करणीय |
कृ |
अनीयर् |
|
पातुम् |
पा |
तुमुन् |
|
खादितुम् |
खाद् |
तुमुन् |
|
कृत्वा |
कृ |
क्त्वा
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