Class-8 Sanskrit (Ruchira) प्रथमः पाठः - सुभाषितानि / NCERT Book/ CBSE Syllabus
प्रथमः
पाठः
सुभाषितानि
['सुभाषित' शब्द 'सु + भाषित' इन दो शब्दों के मेल से सम्पन्न होता
है। सु का अर्थ सुन्दर, मधुर तथा भाषित का अर्थ वचन है। इस
तरह सुभाषित का अर्थ सुन्दर / मधुर वचन है। प्रस्तुत पाठ में सूक्तिमञ्जरी,
नीतिशतकम्, मनुस्मृतिः, शिशुपालवधम्,
पञ्चतन्त्रम् से रोचक और विचारोत्तेजक श्लोकों को संगृहीत किया गया
है।]
गुणा गुणज्ञेषु गुणा भवन्ति
ते निर्गुणं प्राप्य भवन्ति दोषाः ।
सुस्वादुतोयाः प्रभवन्ति नद्यः
समुद्रमासाद्य भवन्त्यपेयाः ॥1॥
अनुवाद- गुण गुणीजनों में गुण ही बने रहते
हैं। वे (गुण) निर्गुण (दुर्गुण) व्यक्ति के पास जाकर दोष बन जाते हैं। नदियाँ
स्वादिष्ट जल वाली होती हैं। वे ही समुद्र में मिलकर अपेय (न पीने योग्य) बन जाती
हैं।
साहित्यसङ्गीतकलाविहीनः
साक्षात्पशुः पुच्छविषाणहीनः।
तृणं न खादन्नपि जीवमानः
तद्भागधेयं परमं पशूनाम् ||2||
अनुवाद - साहित्य,
संगीत और कला से रहित व्यक्ति सींग और पूँछ से रहित साक्षात् पशु
है। वह घास न खाते हुए भी जीवित है, यह तो पशुओं के लिए परम
सौभाग्य की बात है।
लुब्धस्य नश्यति यशः पिशुनस्य मैत्री
नष्टक्रियस्य कुलमर्थपरस्य धर्मः।
विद्याफलं व्यसनिनः कृपणस्य सौख्यं
राज्यं प्रमत्तसचिवस्य नराधिपस्य ||3||
अनुवादः-लोभी का यश,
चुगलखोर की मित्रता, निकम्मे का कुल, अर्थपरक (स्वाथा) का धर्म व्यसनी की विद्या का फल, कंजूस
का सुख और प्रमत्त मन्त्री वाले राजा का राज्य नष्ट जाता है।
पीत्वा रसं तु कटुकं मधुरं समानं
माधुर्यमेव जनयेन्मधुमक्षिकासौ ।
सन्तस्तथैव समसज्जनदुर्जनानां
श्रुत्वा वचः मधुरसूक्तरसं सृजन्ति ॥4॥
अनुवाद- वह
मधुमक्खी तो कड़वे रस को पीकर (भी) मधुर के समान मधुरता (शहद) ही उत्पन्न करती है।
उसी प्रकार सज्जन (लोग) दुष्टों के कटु वचन सुनकर (भी) सज्जनों के समान मधुर
सूक्तों के रस वाली वाणी बोलते हैं।
महतां प्रकृतिः सैव वर्धितानां परैरपि ।
न जहाति निजं भावं संख्यासु लाकृतिर्यथा ||5||
अनुवाद-दूसरे के द्वारा प्रशंसित होने या
बढ़ाए जाने पर भी महापुरुषों का स्वभाव नहीं बदलता है जैसे संख्याओं में नौ का अंक
अपना स्वभाव (आकार) नहीं छोड़ता है।
स्त्रियां रोचमानायां सर्व तद् रोचते कुलम् ।
तस्यां त्वरोचमानायां सर्वमेव न रोचते।।6।।
अनुवाद- स्त्रियों के अच्छा लगने (स्त्री की
प्रसन्नता) पर सारा कुल अच्छा लगता अच्छा न लगने (अभाव होने) पर कुछ भी अच्छा नहीं
लगता है।
शब्दार्थाः
गुणज्ञेषु |
गुणियो में |
सुस्वादुतोयाः |
स्वादिष्ट जल |
प्रभवन्ति |
निकलती हैं/ उत्पन्न होती हैं |
समुद्रमासाद्या (समुद्रम् +आसाद्य) |
समुद्र में मिलकर/ पहुँचकर |
भवन्त्यपेयाः (भवन्ति+अपेयाः) |
पीने योग्य नहीं होती |
विषाणहीनः |
सींग के बिना |
खादन्नपि (खादन् +अपि) |
खाते
हुए भी |
जीवनमानः |
जिन्दा
रहता हुआ |
पिशुनस्य |
चुगलखोर/ चुगली करने वाले की |
व्यसनिनः |
बुरी लत वालों की |
नराधिपस्य (नर+ अधिपस्य) |
राजा
का/के/की |
जनयेन्यधुमक्षिकासौ (जनयेत्+ मधुमक्षिका+असौ) |
यह मधुमक्खी पैदा करती/ निर्माण करती है |
सन्तस्तथैव (सन्तः+तथा+एव) |
वैसे ही सज्जन |
सृजन्ति |
निर्माण करते हैं |
प्रकृतिः |
स्वभाव/ आदत |
वर्धितानाम् |
बढ़ाये गए/ प्रशंसित |
परैरपि (परैः+अपि) |
दसरों से भी/ परायों से भी |
जहाति |
छोड़ता है |
लाकृतिर्यथा (लृ+आकृतिः+यथा) |
जैसे
नौ का आकार/ स्वभाव |
रोचमानायाम् |
अच्छी लगने पर |
अभ्यासः
1. पाठे वत्तानां पद्यानां सस्वरवाचनं कुरूत।
2. शलोकांशेषु
रिक्तस्थानानि पूरयत-
क. समुद्रमासाद्य भवन्त्यपेयाः।
ख. श्रुत्वा वचः मधुरंसूक्तरसं
सृजन्ति।
ग. तद्भागधेयं परमं पशूनाम्।
घ.
विद्याफलं व्यसनिनः कृपणस्य सौख्यम्।
ड. स्त्रियां रोचमानायां सर्वं तद् रोचते
कुलम्।
3. प्रश्नानाम् उत्तराणि
एकपदेन लिखत-
क. व्यसनिनः किं नष्यति?
उत्तर- विद्याफलं
ख. कस्यां रोचमानायां सर्वं कुलं रोचते?
उत्तर- स्त्रियां
ग. कस्य यशः नश्यति?
उत्तर- लुब्धस्य
घ. मधुमक्षिका किं जनयति?
उत्तर- मधुमक्षिका माधुर्यमेव जनयति?
ड. मधुरसूक्तरसं के सृजन्ति?
उत्तर- मधुरसूक्तरसं सन्ताः सृजन्ति।
4. अधोलिखित-तद्भव-शब्दानां
कृते पाठात् चित्वा संस्कृतपदानि लिखत-
यथा- कंजूस-कृपणः
कड़वा |
कटुकं |
पूँछ |
पुच्छ |
लोभी |
लुब्ध |
मधुमक्खी |
मधुमक्षिका |
तिनका |
तृणं |
5. अधोलिखितेषु वाक्येषु कर्तृपदं
क्रियापदं च चित्वा लिखत-
वाक्यानि |
कर्त्ता |
क्रिया |
सन्तः मधुरसूक्तरसं सृजन्ति। |
सन्तः |
सृजन्ति |
निर्गुणं प्राप्य भवन्ति दोषाः। |
निर्गुणं |
भवन्ति |
गुणज्ञेषु गुणाः भवन्ति। |
गुणज्ञ |
भवन्ति |
मधुमक्षिका माधुर्यं जनयेत्। |
मधुमक्षिका |
जनयेत् |
पिशुनस्य मैत्री यषः नाशयति। |
पिशुनः |
नाशयति |
नद्यः समुद्रमासाद्य अपेयाः भवन्ति। |
नद्यः |
भवन्ति |
3. रेखाकिंतानि पदानि आधृत्य प्रश्ननिर्माणं कुरूत-
क. गुणाः गुणज्ञेषु गुणाः भवन्ति।
काः
गुणज्ञेषुः गुणाः भवन्ति।
ख. नद्यः
सुस्वादुतोयाः भवन्ति।
काः सुस्वादुतोयाः भवन्ति?
ग.
लुब्धस्य यशः नष्यति।
कस्य यशः नरयति?
घ.
मधुमक्षिका माधुर्यमेव जनयति।
का माधुर्यमेव जनयति?
ड. महतां प्रकृतिः सुस्थिरा भवति।
काम् प्रकृतिः सुस्थिरा भवति?
6. उदाहरणानुसारं पदानि
पृथक् कुरूत-
यथा- समुद्रमासाद्य- समुद्रम्
+ आसाद्य
माधुर्यमेव-माधुर्यम् + एवं
अल्पमेव- अल्पम् + एव
सर्वमेव- सर्वम् + एव
समानमपि-समानम् + अपि
महात्मनामुक्तिः-महात्मनाम् + उक्तिः
योग्यता-विस्तारः
प्रस्तुत पाठ में महापुरुषों की प्रकृति,
गुणियों की प्रशंसा, सज्जनों की वाणी, साहित्य- संगीत- कला की महत्ता,
चुगलखोरों की दोस्ती से होने वाली हानि, स्त्रियों
के प्रसन्न रहने में सबकी खुशहाली को आलङ्कारिक भाषा में प्रस्तुत किया गया है।
पाठ के श्लोकों के समान अन्य सुभाषितों को भी स्मरण रखें तथा जीवन में उनकी
उपादेयता/संगति पर विचार करें।
(क) येषां
न विद्या न तपो न दानम्
ज्ञानं न शीलं न गुणो न धर्मः।
ते मर्त्यलोके भुवि
भारभूताः
मनुष्यरूपेण
मृगाश्चरन्ति ॥
(ख) गुणा: पूजास्थानं गुणिषु न च लिङ्ग न च
वयः।
(ग) प्रारभ्य चोत्तमजनाः न परित्यजन्ति
(घ) दुर्जनः परिहर्तव्यो विद्ययाऽलङ्कृतोऽपि
सन्।
(ङ) न प्राणान्ते प्रकृतिविकृतिर्जायते
चोत्तमानाम्।
(च) उदये सविता रक्तो रक्तश्चास्तङ्गते तथा|
सम्पत्तौ च विपत्तौ च महतामेकरूपता ।।
उपर्युक्त सुभाषितों के अंशों को पढ़कर
स्वयं समझने का प्रयत्न करें तथा संस्कृत एवं अन्य भारतीय भाषाओं के सुभाषितों का
संग्रह करें।
'गुणा गुणज्ञेषु गुणा भवन्ति' - इस पंक्ति में विसर्ग सन्धि के नियम में 'गुणा:'
के विसर्ग का दोनों बार लोप हुआ है। सन्धि के बिना पंक्ति 'गुणा: गुणज्ञेषु गुणाः भवन्ति' होगी।
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