Class-8 Sanskrit (रुचिरा) मङ्गलम् / NCERT books/ CBSE Syllabus
मङ्गलम्
यज्जाग्रतो दूरमुवैति दैवं
तदु सुप्तस्य तथैवैति ।
दूरंगमं ज्योतिषां ज्योतिरेकं
तन्मे मनः शिवसङ्कल्पमस्तु ॥ 1 ॥
-शुक्लयजुर्वेदः ( 34.1)
सुषारथिरश्वानिव यन्मनुष्या
न्नेनीयतेऽभीशुभिर्वाजिन इव ।
हृत्प्रतिष्ठं यदजिरं जविष्ठ
तन्मे मनः शिवसङ्कल्पमस्तु ॥2॥
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शुक्लयजुर्वेदः ( 34.6)
रूपान्तरम्
जो रहता है जाग्रत और दूर दूर तक जाता है,
सोया रह कर भी ऐसे ही जा कर वापस आता है। दूर दूर वह जाने वाला सब
तेजों का ज्योतिनिधान सदा समन्वित शुभसङ्कल्पों से वह मन मेरा बने महान् ॥1॥
जो जन जन को बागडोर से इधर उधर ले जाता है,
चतुर सारथी ज्यों घोड़ों को इच्छित चाल चलाता है। सदा प्रतिष्ठित
हृदयदेश में अजर और अतिशय गतिमान् सदा समन्वित शुभसङ्कल्पों से वह मन मेरा बने
महान् ॥2॥
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