Class-6 Sanskrit (रुचिरा) पंचमः पाठः - वृक्षाः /NCERT book/ CBSE Syllabus
पंचमः पाठः
वृक्षाः
शब्दार्थाः
वने वने |
प्रत्येक वन में |
in each forest |
निवसन्तः |
रहते हुए/ रहने वाले |
Living |
रचयन्ति |
रचते हैं, बनाते हैं |
Make |
शाखा |
डालियाँ, टहनियाँ |
branches |
दोला |
झूला |
Swing |
आसीनाः |
बैठे हुए |
sitting |
विहगाः |
पक्षीगण |
birds |
किमपि |
कुछ भी |
anything /
something |
कूजन्ति |
कूकते हैं/कूकती हैं |
chirp |
सन्ततम् |
निरन्तर/ लगातार |
always |
साधुजनाः |
तपस्वी लोग/ सज्जन |
sages |
इव |
की
तरह |
like |
पिबन्ति |
पीते हैं |
drink |
स्पृशन्ति |
स्पर्श करते हैं |
touch |
नभः |
आकाश को |
the sky |
शिरस्सु |
सिर पर |
on head |
वहन्ति |
ढोते हैं |
Carry |
पयोदर्पणे |
जलरूपी दर्पण/ आईने में |
in mirror, like
water |
स्वप्रतिबिम्बम् |
अपने प्रतिबिम्ब
को |
one’s own image |
पश्यन्ति |
देखते हैं |
see, look at |
कौतुकेन |
आश्चर्य से |
with wonder |
प्रसार्य |
फैलाकर |
expanding |
स्वच्छायासंस्तरणम् (स्व +च्छाया+संस्तरणम्) |
अपनी छाया रूपी बिस्तरे को |
own shadow’s bed |
|
|
|
सत्कारम् |
आदर |
Respect |
अभ्यासः
1. वचनानुसारं रिक्तस्थानानि पूरयत-
एकवचनम् |
द्विवचनम् |
बहुवचनम् |
वनम् |
वने |
वनानि |
जलम् |
जले |
जलानि |
बिम्बम् |
बिम्बे
|
बिम्बानि |
वृक्षम् |
वृक्षौ |
वृक्षान् |
पवनम् |
पवनौ |
पवनान् |
जलम् |
जलौ
|
जलनान् |
जनम् |
जनौ |
जनान् |
2. कोष्ठकेषु प्रदत्तशब्देषु उपयुक्तविभक्तिं योजयित्वा रिक्तस्थानानि पूरयत-
यथा – अहं रोटिकां खादामि। (रोटिका)
(क) त्वं जलं पिबसि। (जल)
(ख) छात्रं
दूरदर्शनं पश्यति। (दूरदर्शन)
(ग) वृक्षाः पवनम् पिबन्ति। (पवन)
(घ) ताः कथां लिखन्ति। (कथा)
(ड़) आवाम् जंतुशालां गच्छावः। (जंतुशाला)
3. अधोलिखितेषु वाक्येषु कर्तृपदानि चिनुत-
(क) वृक्षाः नभः
शिरस्सु वहन्ति।
(ख)
विहगाः वृक्षेषु कूजन्ति।
(ग) पयोदर्पणे वृक्षाः स्वप्रिबिम्बं पश्यन्ति।
(घ) कृषकः अन्नसनि
उत्पादयति।
(ड) सरोवरे
मत्स्याः सन्ति।
क. वृक्षाः कैः पातालं
स्पृशन्ति?
उत्तर-
पादैः
ख. वृक्षाः किं रचयन्ति?
उत्तर-
वनम्
ग. विहगाः कुत्र असीनाः?
उत्तर-
शाखादोलाम्
घ. कौतुकेन वृक्षाः किं पश्यन्ति?
उत्तर-
स्वप्रतिबिम्बम्
5. समुचितैः पदैः रिक्तस्थानानि पूरयत-
विभक्तिः |
एकवचनम् |
द्विवचनम् |
बहुवचनम् |
प्रथमा |
गजः |
गजौ |
गजाः |
|
अश्वः |
अश्वौ |
अश्वाः |
द्वितीया
|
सूर्यम् |
सूर्यौ |
सूर्यान् |
|
चंद्रम् |
चन्द्रौ |
चन्द्रान् |
तृतीया |
विडालेन |
विडालाभ्याम् |
विडालैः |
|
मण्डूकेन |
मण्डूकाभ्याम् |
मण्डूकैः |
चतुर्थी |
सर्पाय |
सर्पाभ्याम् |
सर्पेभ्यः |
|
वानराय |
वानराभ्याम् |
वानरेभ्यः |
पंचमी |
मोदकात् |
मोदकाभ्याम् |
मोदकेभ्यः |
|
वृक्षात् |
वृक्षाभ्याम् |
वृक्षेभ्यः |
षष्ठी |
जनस्य |
जनयोः |
जनानाम् |
|
शुकस्य |
शुकयोः |
शुकानाम् |
सप्तमी |
शिक्षके |
शिक्षकयोः |
शिक्षकेषु |
|
मयूरे |
मयूरयोः |
मयूरेषु |
सम्बोधनम् |
हे
बालक! |
हे
बालकौ! |
हे
बालकाः |
|
हे नर्तक! |
हे नतकौ! |
हे नर्तकाः! |
6. भिन्नप्रकृतिकं पदं चिनुत-
(क) गंड.गा,
लता,
यमुना, नर्मदा ।
(ख) उद्यानम्,
कुसुमम्, फलम्,
चित्रम्।
(ग) लेखनी,
तूलिका, चटका, पाठशाला।
(घ) आम्रम्,
कदलीफलम्, मोदकम्,
नारड.गम्।
I would like to thank Mrs. Manju Gautam for contributing all the chapters of
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